हिंदी कविता का अथेंटिक ठिकाना

सोमवार, 25 फ़रवरी 2013

टूटा मन

कागज की नाव बहाता कैसे !
ख़ुद को उस पार लगाता कैसे !

कुछ इस तरह चिन्दी हुए जज़्बात,
टुकड़ों से भला ग़ज़ल बनाता कैसे !

हमको जला देती है नज़र की तेज़ी,
मुद्दतों ज़िंदगी बचाता कैसे !

फूलों पे तितली सी बहकती है वो,
बदन की खुशबू बचाता कैसे !

हर ख़ता इक सबक सिखलाती है,
मगर टूटे दिल को मनाता कैसे !

अब चलो अच्छा है रोने दो मुझे,
तुमको हर हाल में हंसाता कैसे !
                                                    (अभय श्रीवास्तव)

9 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

वाह क्या बात है! बहुत खूब!

बेनामी ने कहा…

अभय महोदय बहुत अच्छी सांकेतिक रचना की है आपने बधाई!
'मुद्दतों जिन्दगी बचाता कैसे!' में मुद्दतों के बाद में 'से' का प्रयोग न होने का मतलब जान सकती हूं?
'चिन्दी' का अर्थ तो 'टूटना' होता होगा!
कृपया बताएं
सादर

Anju (Anu) Chaudhary ने कहा…

बहुत खूब

kahekabeer ने कहा…

आप सभी के उत्साहवर्धन के लिए शुक्रिया.
मुद्दतों के बाद 'से' के प्रयोग की आवश्यकता नहीं है. मुद्दत का अर्थ होता है long time.
किसी चीज़ को कई टुकड़ों में फाड़ देने को चिन्दी करना कहते हैं.
धन्यवाद.

Unknown ने कहा…

अच्छी गज़ल है अभयजी.

Madan Mohan Saxena ने कहा…


बहुत सुंदर ग़ज़ल.शुभकामनायें.
आपका ब्लॉग देखा मैने और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.
http://madan-saxena.blogspot.in/
http://mmsaxena.blogspot.in/
http://madanmohansaxena.blogspot.in/
http://mmsaxena69.blogspot.in/

Umesh Maurya ने कहा…

vastav me bahut aachi gajal lagi.

Unknown ने कहा…

आपकी कविता आपकी रचना निर्झर टाइम्स पर लिंक की गयी है। कृपया इसे देखें http://nirjhar-times.blogspot.com और अपने सुझाव दें।

kahekabeer ने कहा…

आप सभी का शुक्रिया.

बातें करनी है तो...

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ई-पता : aabhai.06@gmail.com
दूरभाष : +919811937416

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