हमारी नसों में रुदालियां क्यों बह रही हैं ?
चीखती हुईं अपलक !
मृत्यु क्रंदन तो है, किंतु
मृत्यु शोक नहीं !
हमारे घरों में उदासियां क्यों रह रही हैं ?
सुबह से सांझ तक !
किसी अख़लाक,
वेमुला या नारंग की मौत
ख़बर तो है ! लेकिन
क्या मायने भी रखती है,
जब इंसान ही मरा हुआ हो !
भीड़ मारती है, बाहर की
ज़ेहन के भीतर की !
भीड़ का रंग होता है, किंतु
भीड़ का चेहरा नहीं !
हमारे मोहल्लों में खाइयां क्यों रह रही हैं ?
चौहद्दियों की मियाद तक !
हमारी नसों में रुदालियां क्यों बह रही हैं ?
चीखती हुईं अपलक !
इन लाशों को,
सस्ती मत समझिए
सरकारें बनती-बिगड़ती हैं !
'मुर्दातंत्र' में मौत की
कीमत तय हो रही है !
जनाजा निकल रहा है,
जान अटकी हुई है !
मरने वाला डरा हुआ है, किंतु
मरने वाला मरा नहीं !
हमारी संवेदनाओं में चीटियां क्यों बिखर रही हैं ?
लोभ की व्याधि तक !
हमारी नसों में रुदालियां क्यों बह रही हैं ?
चीखती हुईं अपलक !
अख़लाक-वेमुला-नारंग
सिर्फ़ किरदार हैं,
दुखांत नाटकों के !
किसी के आंसू सच्चे नहीं
सभी अभिभूत हैं !
कोई अपनी मौत नहीं मरता,
तुम्हारे चश्मे से क्यों मरता है ?
मौत बेबस है, किंतु
मौत बोझिल नहीं !
हमारी बनावटों में सच्चाइयां क्यों पनप रही हैं ?
बेझिझक बेझिझक !
हमारी नसों में रुदालियां क्यों बह रही हैं ?
चीखती हुईं अपलक !
(अभय श्रीवास्तव)
चीखती हुईं अपलक !
मृत्यु क्रंदन तो है, किंतु
मृत्यु शोक नहीं !
हमारे घरों में उदासियां क्यों रह रही हैं ?
सुबह से सांझ तक !
किसी अख़लाक,
वेमुला या नारंग की मौत
ख़बर तो है ! लेकिन
क्या मायने भी रखती है,
जब इंसान ही मरा हुआ हो !
भीड़ मारती है, बाहर की
ज़ेहन के भीतर की !
भीड़ का रंग होता है, किंतु
भीड़ का चेहरा नहीं !
हमारे मोहल्लों में खाइयां क्यों रह रही हैं ?
चौहद्दियों की मियाद तक !
हमारी नसों में रुदालियां क्यों बह रही हैं ?
चीखती हुईं अपलक !
इन लाशों को,
सस्ती मत समझिए
सरकारें बनती-बिगड़ती हैं !
'मुर्दातंत्र' में मौत की
कीमत तय हो रही है !
जनाजा निकल रहा है,
जान अटकी हुई है !
मरने वाला डरा हुआ है, किंतु
मरने वाला मरा नहीं !
हमारी संवेदनाओं में चीटियां क्यों बिखर रही हैं ?
लोभ की व्याधि तक !
हमारी नसों में रुदालियां क्यों बह रही हैं ?
चीखती हुईं अपलक !
अख़लाक-वेमुला-नारंग
सिर्फ़ किरदार हैं,
दुखांत नाटकों के !
किसी के आंसू सच्चे नहीं
सभी अभिभूत हैं !
कोई अपनी मौत नहीं मरता,
तुम्हारे चश्मे से क्यों मरता है ?
मौत बेबस है, किंतु
मौत बोझिल नहीं !
हमारी बनावटों में सच्चाइयां क्यों पनप रही हैं ?
बेझिझक बेझिझक !
हमारी नसों में रुदालियां क्यों बह रही हैं ?
चीखती हुईं अपलक !
(अभय श्रीवास्तव)
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