मेरी कुछ शर्त है,
आदमी बनने की.
मुझे एक घोड़ा चाहिए,
ताकि सवारी कर सकूं,
ख़्वाहिशों की सड़क पर.
रौंद सकूं तुम्हारे,
ख्यालात के महलों को.
मुझे गधे भी पालने हैं,
अपने सारे बोझ,
उसकी पीठ पर टिका सकूं.
इस जगह से उस जगह तक,
वो मेरी ज़िम्मेदारियां ढोता रहे.
कुत्ता जो मुझे हमेशा से प्यारा रहा है,
मेरी रखवाली करता रहे.
लेकिन ज़रा ध्यान रखना,
कोई वफ़ादार कुत्ता ही तलाशना.
मुझे थोड़े आदमी भी चाहिए,
हां, हां; बस गुलामी की ख़ातिर ही तो.
अब घोड़े-गधे-कुत्ते तो,
जानवर ही तो हैं,
इनका क्या भरोसा?
बोलो मेरी शर्त पूरी करोगे,
ताकि मैं आदमी बन जाऊं?
(अभय श्रीवास्तव)
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