हिंदी कविता का अथेंटिक ठिकाना

शुक्रवार, 17 मई 2013

ताज़ा गोश्त

पूरे पंद्रह सौ...
सर !
ही.. ही.. ही..
ताज़ा गोश्त हैं !
आदिवासी लड़कियां हैं !

पैसे वसूल होंगे...
सर !
घबराइये ना,
पलामू से दिल्ली-
बहुत दूर है.

वैसे भी,
दिल्ली से भी दिल्ली-
बहुत दूर है.

सौदा फ़ायदे का है...
सर !
ही.. ही.. ही..
गोश्त बहुत मीठा है !
                                   (अभय श्रीवास्तव)

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