कागज की नाव बहाता कैसे !
ख़ुद को उस पार लगाता कैसे !
कुछ इस तरह चिन्दी हुए जज़्बात,
टुकड़ों से भला ग़ज़ल बनाता कैसे !
हमको जला देती है नज़र की तेज़ी,
मुद्दतों ज़िंदगी बचाता कैसे !
फूलों पे तितली सी बहकती है वो,
बदन की खुशबू बचाता कैसे !
हर ख़ता इक सबक सिखलाती है,
मगर टूटे दिल को मनाता कैसे !
अब चलो अच्छा है रोने दो मुझे,
तुमको हर हाल में हंसाता कैसे !
(अभय श्रीवास्तव)
9 टिप्पणियां:
वाह क्या बात है! बहुत खूब!
अभय महोदय बहुत अच्छी सांकेतिक रचना की है आपने बधाई!
'मुद्दतों जिन्दगी बचाता कैसे!' में मुद्दतों के बाद में 'से' का प्रयोग न होने का मतलब जान सकती हूं?
'चिन्दी' का अर्थ तो 'टूटना' होता होगा!
कृपया बताएं
सादर
बहुत खूब
आप सभी के उत्साहवर्धन के लिए शुक्रिया.
मुद्दतों के बाद 'से' के प्रयोग की आवश्यकता नहीं है. मुद्दत का अर्थ होता है long time.
किसी चीज़ को कई टुकड़ों में फाड़ देने को चिन्दी करना कहते हैं.
धन्यवाद.
अच्छी गज़ल है अभयजी.
बहुत सुंदर ग़ज़ल.शुभकामनायें.
आपका ब्लॉग देखा मैने और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.
http://madan-saxena.blogspot.in/
http://mmsaxena.blogspot.in/
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http://mmsaxena69.blogspot.in/
vastav me bahut aachi gajal lagi.
आपकी कविता आपकी रचना निर्झर टाइम्स पर लिंक की गयी है। कृपया इसे देखें http://nirjhar-times.blogspot.com और अपने सुझाव दें।
आप सभी का शुक्रिया.
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