तल्ख़ियां सीने में, पर मौसम सुहाना है.
इस आबो-हवा में गैरत आज़माना है.
धूप तीखी मेहनतकश का ख़म छीने,
काले चश्मेवालों के ज़ेरे-क़दम सारा ज़माना है.
प्लेट में मेवे ज़बां पे चाशनी,
अजब ये जीभ का लपलपाना है.
बदन की खुशबू--बदन का पसीना,
करीब आ जाएंगे वे, लबों का बुलाना है.
ज़ोर की बारिश में जज़्बे सुलगते हैं,
ठिठुरा हुआ है आदमी औ आंच पे रोटी पकाना है.
(अभय श्रीवास्तव)
इस आबो-हवा में गैरत आज़माना है.
धूप तीखी मेहनतकश का ख़म छीने,
काले चश्मेवालों के ज़ेरे-क़दम सारा ज़माना है.
प्लेट में मेवे ज़बां पे चाशनी,
अजब ये जीभ का लपलपाना है.
बदन की खुशबू--बदन का पसीना,
करीब आ जाएंगे वे, लबों का बुलाना है.
ज़ोर की बारिश में जज़्बे सुलगते हैं,
ठिठुरा हुआ है आदमी औ आंच पे रोटी पकाना है.
(अभय श्रीवास्तव)
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