हिंदी कविता का अथेंटिक ठिकाना

शुक्रवार, 1 मार्च 2013

मौसम बेईमान है

तल्ख़ियां सीने में, पर मौसम सुहाना है.
इस आबो-हवा में गैरत आज़माना है.

धूप तीखी मेहनतकश का ख़म छीने,
काले चश्मेवालों के ज़ेरे-क़दम सारा ज़माना है.

प्लेट में मेवे ज़बां पे चाशनी,
अजब ये जीभ का लपलपाना है.

बदन की खुशबू--बदन का पसीना,
करीब आ जाएंगे वे, लबों का बुलाना है.

ज़ोर की बारिश में जज़्बे सुलगते हैं,
ठिठुरा हुआ है आदमी औ आंच पे रोटी पकाना है.
                                                                            (अभय श्रीवास्तव)

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