कविताओं में ज़रूरी नहीं, कि सच लिखा हो।
क्या कविताएं भी, सिर्फ़ शब्दों की पैकेजिंग हो सकती हैं ?
कविताओं में ज़रूरी नहीं,
कि सच लिखा हो।
क्या कविताएं भी, सिर्फ़...
शब्दों की पैकेजिंग हो सकती हैं ?
क्या खूनी शासन व्यवस्था को,
'लाल फूल' लिख सकती हैं कविताएं ?
क्या कठपुतलियों को,
जीवंत 'आदम' कह सकती हैं कविताएं ?
क्या कविताओं को रोना आता है,
अनंत-असीमित दुखों पर ?
क्या कविताओं ने झूठ बोला है, धोखाधड़ी की है ?
या फिर दंगे करवाये हैं ?
कविताओं में ज़रूरी नहीं
बुराई से बच, लिखा हो।
कविताओं में ज़रूरी नहीं,
कि सच लिखा हो।
क्या कविताएं भी, सिर्फ़ ...
शब्दों की पैकेजिंग हो सकती हैं ?
पत्थर मारती हैं कविताएं,
तो कटघरे में क्यों नहीं खड़ी होती हैं ?
तमाम सबूत और गवाह मौजूद हैं,
तो अपराधी क्यों नहीं साबित होती हैं ?
कविताएं मज़बूत का,
हथियार क्यों बन गईं ?
मां से क्यों रूठ गईं कविताएं ?
लोरियों से दूर क्यों भाग गईं कविताएं ?
कविताओं में ज़रूरी नहीं,
दूध-भात, चांदी का चम्मच, लिखा हो।
कविताओं में ज़रूरी नहीं,
कि सच लिखा हो।
क्या कविताएं भी, सिर्फ़ ...
शब्दों की पैकेजिंग हो सकती हैं ?
ये विज्ञान युग है, एनलाइटेंड इरा;
तो क्या कविताओं ने भी तरक्की की है ?
या फिर घिसी-पिटी सोच पर,
सिर्फ़ नौकरी पक्की की है ?
आधुनिक कविताओं में,
नए विचारों के डंठल क्यों नहीं उगते ?
क्यों कविताओं में अग्नि नहीं होती ?
कवि क्रांति के महाकाव्य क्यों नहीं लिखते ?
कविताओं में ज़रूरी नहीं,
जो बात जाए जँच, लिखा हो।
कविताओं में ज़रूरी नहीं,
कि सच लिखा हो।
क्या कविताएं भी, सिर्फ़ ...
शब्दों की पैकेजिंग हो सकती हैं ?
कविताओं के कंधे झुक गए,
क्यों बोझ से दोहरी हुई कविताएं ?
थक जाना तो कविताओं का मर जाना है,
क्यों लिखी गईं मरी हुई कविताएं ?
प्राण फूंक सके कौन,
सोई हुई चिताओं को ?
ज़िंदा कौन करेगा,
लुटी-पिटी कविताओं को ?
कविताओं में ज़रूरी नहीं,
नटराज का नच, लिखा हो।
कविताओं में ज़रूरी नहीं,
कि सच लिखा हो।
क्या कविताएं भी, सिर्फ़ ...
शब्दों की पैकेजिंग हो सकती हैं ?
(अभय)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें