हिंदी कविता का अथेंटिक ठिकाना

शुक्रवार, 2 अक्टूबर 2015

किसने किसको मारा ?

तुमने गोमांस खाने वाले,  'इकलाख' को नहीं मारा। ख़ुद को मारा है।










तुमने गोमांस खाने वाले,
'इकलाख' को नहीं मारा
ख़ुद को मारा है।
जैसे 'चार्ली हेब्दो' के दफ़्तर में,
'इकलाख' ने ख़ुद को मारा था।



जैसे सीरिया का
'अयलन कुर्दी' मरा था,
अपनी ज़मीन से बेदखल,
मुसीबतों की लहरों से पस्त,
दुखों के समंदर पर औंधा पड़ा।


लेकिन 'अयलन' को,
'बगदादी' ने नहीं मारा,
तेल के कुओं ने मारा,
हथियारों पर मुनाफ़े के लालच ने मारा।

मुनाफ़ा तो सत्ता की पहली शर्त है,
तो क्या सबको सत्ता ने मारा ?
लेकिन कहीं सुना था -
मरे हुए को ही सत्ता मारती है।
                                             (अभय)

         










* गोमांस खाने की अफवाह पर दादरी के इकलाख को भीड़ ने मारा
* मुहम्मद के कार्टून पर चार्ली हेब्दो के दफ़्तर में नरसंहार हुआ
* सीरिया में गृहयुद्ध के कारण शरणार्थी बना अयलन कुर्दी तुर्की के समुद्र तट पर मरा पड़ा मिला




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