हिंदी कविता का अथेंटिक ठिकाना

गुरुवार, 29 अक्टूबर 2015

सियासी चेहरे

 काले देखे, गोरे देखे, और सियासी चेहरे देखे।थोड़े से चितकबरे देखे, धूर्त बड़े वे गहरे देखे।
                                                         

काले देखे, गोरे देखे,
और सियासी चेहरे देखे।
थोड़े से चितकबरे देखे,
धूर्त बड़े वे गहरे देखे।

राजनीति पर लिखूं ग़ज़ल तो,
मापदंड सब दोहरे देखे।
गूंगे देखे, बहरे देखे,
दांव लगे कुछ मोहरे देखे।
और सियासी चेहरे देखे।

भूख-ज़ुल्म और आंसू था,
पर राजयोग सुनहरे देखे।
और संसद पर पहरे देखे,
किंकर्तव्यविमूढ़ जम्हूरे देखे।
और सियासी चेहरे देखे।

तुम चिल्लाओ लोकतंत्र-तुम चिल्लाओ लोकतंत्र,
मैंने तो दम घुटते दोपहरे देखे।
फिर नेताओं के दौरे देखे,
बेबस के आंसू ठहरे देखे।
और सियासी चेहरे देखे।

गिरगिट देखे, झूठे देखे,
हत्यारों के नखरे देखे।
फिर हारे देखे, दुत्कारे देखे,
कितनों के सपने बिखरे देखे।
और सियासी चेहरे देखे।

अख़बारों में इश्तेहार छपे हैं,
सरकारों पर भंवरे देखे।
लेकिन विषपान किए ये कौन खड़े,
सत्ता से भिड़ते बदन इकहरे देखे।
और सियासी चेहरे देखे।

                                  (अभय श्रीवास्तव)


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