हिंदी कविता का अथेंटिक ठिकाना

बुधवार, 1 जनवरी 2014

मेरा मुजफ्फरनगर और नया साल !

इक मुजफ्फरनगर
मेरे सीने में दबा है कहीं,
नए साल पर
पिज्जा की हर बाइट
और कोक की हर सिप के साथ
मुजफ्फरनगर की सिहरन कंपकंपाती है.
कश्मीर की बर्फीली हवा-
मेरे कान को गुदगुदाती है,
मुझे रोमांच सूझता है,
लेकिन मेरा मुजफ्फरनगर-
मेरी आंखों में उतर आता है.
कोई है जो
मेरा मुजफ्फरनगर छीनना चाहता है,
मुझे हनी सिंह यो यो
सुनाया जाता है.
मुजफ्फरनगर के ख़रीदार भी बहुत हैं,
सब बोली लगा रहे हैं,
मेरी कीमत- एक वोट
महान लोकतंत्र की सबसे कीमती चीज़ है.
...और
मेरे सीने में दबा मुजफ्फरनगर
चुपचाप सो जाना चाहता है.

(अभय श्रीवास्तव)

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