हिंदी कविता का अथेंटिक ठिकाना

मंगलवार, 3 दिसंबर 2013

मेहंदी का रंग बदलता क्यूं है?

महबूब तेरी मेहंदी का रंग...
मौसम देख बदलता क्यूं है?
मेरे बसंत में सुर्ख गुलाब है,
वर्ना खूं है.

जवानी जैसी कोई उम्र हुआ करती है,
जोश-ए-मुहब्बत आजमाता क्यूं है?
सहर मेरा आंखों में शबे गम में भी,
नूरे नज़र चुराता क्यूं है?
ठहर जाओ, न जाओ, मान भी जाओ
कोई पगला यूं कुलबुलाता क्यूं है?
महबूब तेरी मेहंदी का रंग...
मौसम देख बदलता क्यूं है?

तुम शर्त रखो जी लेने की,
ज़लज़ले ज़िंदगी के बुलाता क्यूं है?
तमाशाई है दिल का आईना भी,
हर दीदार पर ख़ुदी को रुलाता क्यूं है?
तुमने मुकद्दमा चला दिया बेगुनाही का,
वो गैरत वाला है उसे फंसाता क्यूं है?
महबूब तेरी मेहंदी का रंग...
मौसम देख बदलता क्यूं है?
                 
                                   (अभय श्रीवास्तव)

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