हम रोज़-ब-रोज़ यूं ही एतबार करते हैं.
वफ़ा या बेवफ़ा सब पे जां निसार करते हैं.
उस पहलू में कई बैठे अब तलक,
अदब का कोठा है सब इंतज़ार करते हैं.
आईने की तरह उनकी हर अदा है,
चेहरों के दर्द इश्तिहार करते हैं.
खनक, मोती, चंदन, पानी, धड़कन
हर दिन को यूं ही इतवार करते हैं.
मुद्दतों बाद बहुत रोया,
अब भी कुछ अपने बेकरार करते हैं.
(अभय श्रीवास्तव)
वफ़ा या बेवफ़ा सब पे जां निसार करते हैं.
उस पहलू में कई बैठे अब तलक,
अदब का कोठा है सब इंतज़ार करते हैं.
आईने की तरह उनकी हर अदा है,
चेहरों के दर्द इश्तिहार करते हैं.
खनक, मोती, चंदन, पानी, धड़कन
हर दिन को यूं ही इतवार करते हैं.
मुद्दतों बाद बहुत रोया,
अब भी कुछ अपने बेकरार करते हैं.
(अभय श्रीवास्तव)
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