हिंदी कविता का अथेंटिक ठिकाना

बुधवार, 30 अक्टूबर 2013

दलाल स्ट्रीट

धम से गिरा बाज़ार
टूट गए कई सपने
हुआ क्या ये?
अभी कुछ दिन पहले तो
चढ़ता जा रहा था बुल
तमाम बुलंदियों को छूता.

दरअसल कुछ लोग
इसे कोर्स करेक्शन कहते हैं
ग्लोबल इकोनॉमिक इम्पैक्ट बताते हैं
और कुछ बड़ा घोटाला सूंघते हैं.

निवेशक सभी बड़े परेशान
हताश निराश कन्फ्यूज्ड
अरे हां एक राय ये भी
ख़रीदने का वक्त ये अच्छा है
धैर्य रखो मार्केट चढ़ेगा
फायदा बहुत बढ़ेगा.

अर्थव्यवस्था की सौदेबाजी में सब दलाल.
क्या ऐसी ही समाज व्यवस्था भी नहीं?

चट से टूटते हैं रिश्ते
बिखर जाते हैं हम सभी
जैसे मुर्दे श्मशान पर बिछुड़ते हैं
अभी कल तक साथ ही तो थे

फिर ट्रेन जलती है
मुजफ्फरनगर भी सुलगता है
कोर्स करेक्शन होता है
नेचुरल सोशल इम्पैक्ट है ये
या फिर बड़ी साज़िश?
कौन हावी हो जाता है?

सभी इंसान परेशान
हताश निराश कन्फ्यूज्ड
अरे हां एक राय ये भी
सबक सीखने का ये वक़्त अच्छा है
धैर्य रखो लोग सुधरेंगे
समाज की सोच बदलेंगे.

ये बाज़ार की समाज व्यवस्था है
या समाज की बाज़ार व्यवस्था?

दलाल स्ट्रीट पर
कुछ प्रश्न अनुत्तरित हैं.
व्यवस्था के प्रश्न हैं ये
जवाब मिलेगा कभी?
                  (अभय श्रीवास्तव)

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