हिंदी कविता का अथेंटिक ठिकाना

शुक्रवार, 18 अक्टूबर 2013

... मन मार के सो जाए

फुल्लो क्यों मखमली सेज पर रो जाए
भूख से कह दो मन मार के सो जाए

बीच बाज़ार रामधनी आज हंसता रहा,
यूं दिखावे से भला- कोई बड़ा आदमी हो जाए

मन में इक चुभन हुआ करती है,
बच्चा भूखा रोए, रोटी कूड़ेदानों में खो जाए

मृदंग बजे हैं, छिड़ा सितार है,
छोड़ो न भूख यार, स्वांग सपनों में हो जाए

चांद उदास है, तारे बदमिज़ाज हैं,
चूल्हा बनी विधवा- आग सिंदूरी आंसुओं में धो जाए
                          (अभय श्रीवास्तव)



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