विचारों की कोई फैक्ट्री हुआ करती -
जैसे कपड़ों की होती है,
कविताओं की कितनी थान,
अहा ! तैयार माल मिलता,
नहीं जूझना पड़ता अनुभवों से.
नई छींट, क्वॉलिटी का फाइबर -
एकदम लक्क-दक्क,
प्रिंटिग प्रेस उगलते,
ख़ूबसूरत कविताएं,
ढांक लेते जीवन की कुरुपताएं.
इस अनंत आदिम युग का -
कोई उपसंहार है क्या?
क्या कभी आख़िरी कविता लिखी जाएगी,
विचारों का विकसित काल आएगा?
कविताएं रेडी-टू-निट होंगी क्या?
(अभय श्रीवास्तव)
जैसे कपड़ों की होती है,
कविताओं की कितनी थान,
अहा ! तैयार माल मिलता,
नहीं जूझना पड़ता अनुभवों से.
नई छींट, क्वॉलिटी का फाइबर -
एकदम लक्क-दक्क,
प्रिंटिग प्रेस उगलते,
ख़ूबसूरत कविताएं,
ढांक लेते जीवन की कुरुपताएं.
इस अनंत आदिम युग का -
कोई उपसंहार है क्या?
क्या कभी आख़िरी कविता लिखी जाएगी,
विचारों का विकसित काल आएगा?
कविताएं रेडी-टू-निट होंगी क्या?
(अभय श्रीवास्तव)
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