हिंदी कविता का अथेंटिक ठिकाना

सोमवार, 16 सितंबर 2013

रिश्ता


आओ रिश्ता-रिश्ता खेलें !
मां-बेटा खेलें
खेलें बेटी-बाप
भाई-भाई, बहना-बहना
खूं से खूं का रिश्ता तोलें,
आओ रिश्ता-रिश्ता खेलें !

छुपा-छुपी है बहुत यहां पे
कोने में दुबके, नज़रें सब पे
अजब तमाशा, अजब खेल है,
ख़ुद को बचाएं औरों को ठेलें

किस्मत का फेरा
तू मेरा, मैं तेरा
ये भी तो इक रिश्ता है,
अनजाने से अपनेपन तक
रिश्ता तो इक कश्ती है,
आओ मिलकर रिश्ता-रिश्ता खे.. लें
                             (अभय श्रीवास्तव)

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