कोई नदी रोती है.
सीने पे खड़े पुल से,
जब कोई ट्रेन गरजती है,
पीछे ज़िंदगी छूटती होती है.
कोई नदी रोती है.
पुल गर नाव हुआ करते,
समा जाती ट्रेन.
बहती जाती नदी पर नाव,
सीने पे कोई ठहराव नहीं होता.
मगर ज़िंदगी यूं नहीं होती है.
कोई नदी रोती है.
मुसाफिर ने सिक्का ज़ोर से उछाला,
नदी के सीने पे.
नदी सकपकाई, नदी डगमगाई,
क्या सिक्कों से धुलेंगे पाप, मिलेगा पुण्य?
ज़िंदगी क्यों इतनी नपी-तुली होती है?
कोई नदी रोती है.
आ तोड़ दें नदी पर के पुल,
खुले छोड़ दें नदी के किनारे.
डूबने दें शहर औ सभ्यताओं को,
होने दें बिगबैंग, बनने दें यूनीवर्स.
ज़िंदगी क्यों रुकी होती है?
कोई नदी रोती है.
(अभय श्रीवास्तव)
सीने पे खड़े पुल से,
जब कोई ट्रेन गरजती है,
पीछे ज़िंदगी छूटती होती है.
कोई नदी रोती है.
पुल गर नाव हुआ करते,
समा जाती ट्रेन.
बहती जाती नदी पर नाव,
सीने पे कोई ठहराव नहीं होता.
मगर ज़िंदगी यूं नहीं होती है.
कोई नदी रोती है.
मुसाफिर ने सिक्का ज़ोर से उछाला,
नदी के सीने पे.
नदी सकपकाई, नदी डगमगाई,
क्या सिक्कों से धुलेंगे पाप, मिलेगा पुण्य?
ज़िंदगी क्यों इतनी नपी-तुली होती है?
कोई नदी रोती है.
आ तोड़ दें नदी पर के पुल,
खुले छोड़ दें नदी के किनारे.
डूबने दें शहर औ सभ्यताओं को,
होने दें बिगबैंग, बनने दें यूनीवर्स.
ज़िंदगी क्यों रुकी होती है?
कोई नदी रोती है.
(अभय श्रीवास्तव)
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