हिंदी कविता का अथेंटिक ठिकाना

गुरुवार, 15 अगस्त 2013

इक ख़्वाब सुहाना देखा है

इक ख़्वाब सुहाना देखा है.

लोग हंस रहे, गुनगुना रहे,
औरों को गले लगा रहे,
मिलजुल कर रहना देखा है.
इक ख्वाब सुहाना देखा है.

वे देश नहीं थे, प्रांत नहीं थे,
न ही भाषा, न धर्म, न जात-पांत,
सिकुड़ी सीमाओं से लड़ना देखा है.
इक ख्वाब सुहाना देखा है.

बजबजाती नाली नहीं, ऊंचे तंग मकान नहीं,
सड़क पर मोटर-कारें नहीं, कोई थकान नहीं,
झरनों से प्यास बुझाना देखा है.
इक ख्वाब सुहाना देखा है.

पुरखों ने एक स्वर्ग बताया है,
वो स्वर्ग बड़ा ही सुंदर है,
क्या स्वर्ग ख्वाब से सुंदर है?
ख्वाबों में स्वर्ग बनाना देखा है.
इक ख्वाब सुहाना देखा है.
                                         (अभय श्रीवास्तव)



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