हिंदी कविता का अथेंटिक ठिकाना

शनिवार, 10 अगस्त 2013

प्रेम का बहीखाता

मैं डियो लगाता हूं,
गुलाब खरीदता हूं,
बरिस्ता कॉफी पीता हूं,
रोज़-ब-रो़ज़ यूं,
थोड़ा सा तुम्हारा प्रेम खरीदता हूं.

वो,
बित्ता भर का लौंडा,
वही शांकुतलिया जिसकी अम्मा है,
पिद्दी...
सब उसको गाली बकते हैं,
रोज़-ब-रोज़ यूं,
थोड़ा सा प्रेम सबको बांट आता है.

प्रेम का बहीखाता,
किस गणित से भरा जाता है?
                                              (अभय श्रीवास्तव)

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