हिंदी कविता का अथेंटिक ठिकाना

रविवार, 4 अगस्त 2013

अक्कड़-बक्कड़ बम्बे बो

अक्कड़-बक्कड़ बम्बे बो.
रोटी-कपड़ा हमको दो.

पानी-धानी एक तमाशा,
रोते को इक और तमाचा,
सदियों से हम बच्चे हैं,
भूखे-नंगे सच्चे हैं,
नहीं मांगते मिठाई-खिलौना,
हमको थोड़े पैसे दो.
अक्कड़ बक्कड़ बम्बे बो.

कलुआ की आंखें फटी रह गईं,
सपनों में ही धंसी रह गईं,
लढ़िया जैसी चली कहानी,
रेतीली आंखों में आया पानी,
ऐसे-वैसे, कैसे-कैसे, ऐसे-कैसे,
मोती के झरने बहने दो.
अक्कड़ बक्कड़ बम्बे बो.

भूख लगी है बहुत ज़ोर की,
अब नहीं चलेगी आदमखोर की,
रूखा-सूखा नहीं चाहिए,
भूखा-भूखा नहीं चाहिए,
अपना हक़ ले ही लेंगे,
मां का बस आंचल ढक दो.
अक्कड़ बक्कड़ बम्बे बो.
                                          (अभय श्रीवास्तव)


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