हिंदी कविता का अथेंटिक ठिकाना

बुधवार, 24 जुलाई 2013

दर्द-ए-इश्क़

दर्द-ए-इश्क़ तूफ़ानी है.
जुगनुओं को छेड़ती रातरानी है.

चांद औ सूरज हैं किरायेदार,
हवेली दिल की खानदानी है.

माशूक तो हैं संगीत जैसे,
ग्रामोफोन सुनती बुढ़िया नानी है.

मां की सलाइयों की बुनावट नई,
कोमल अहसास में कितनी जवानी है.

मेजपोश में दबी चिट्ठियां हंसती हैं,
हर बात में लंबी कहानी है.

गुलाब ज़रूरी नहीं कि गुलाबी हों,
चमन की रंगत तो वक़्त पर आजमानी है.
                                              (अभय श्रीवास्तव)          

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