इतनी गहराई भी क्या अच्छी !
भरी महफिल में तन्हाई भी क्या अच्छी !
हमारी आंख से मोती अब बरसते नहीं,
ग़रीब की बेसबब रुलाई भी क्या अच्छी !
समंदर पार के परिंदों को मालूम है,
बदलते मौसम में आशनाई भी क्या अच्छी !
दरख़्त को बूढ़े होने का अहसास है,
जड़ों की बेअदब कटाई भी क्या अच्छी !
रिश्तों को नया नाम दे दें मगर,
हुई चीज़ पराई भी क्या अच्छी !
हमसफ़र तेरा उसूल पक्का है,
साथ चलने में जुदाई भी क्या अच्छी !
(अभय श्रीवास्तव)
भरी महफिल में तन्हाई भी क्या अच्छी !
हमारी आंख से मोती अब बरसते नहीं,
ग़रीब की बेसबब रुलाई भी क्या अच्छी !
समंदर पार के परिंदों को मालूम है,
बदलते मौसम में आशनाई भी क्या अच्छी !
दरख़्त को बूढ़े होने का अहसास है,
जड़ों की बेअदब कटाई भी क्या अच्छी !
रिश्तों को नया नाम दे दें मगर,
हुई चीज़ पराई भी क्या अच्छी !
हमसफ़र तेरा उसूल पक्का है,
साथ चलने में जुदाई भी क्या अच्छी !
(अभय श्रीवास्तव)
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