हिंदी कविता का अथेंटिक ठिकाना

बुधवार, 26 जून 2013

वो दिल का रिश्ता है

जलाकर राख कर गया, वो दिल का रिश्ता है.
बुझाकर आग कर गया, वो दिल का रिश्ता है.

हमें मालूम नहीं क्यों लोग रंजिश रखते हैं,
हंसाकर लाजवाब कर गया, वो दिल का रिश्ता है.

कागज़ की नाव आंगन में खूब तैराई,
डुबाकर उस पार कर गया, वो दिल का रिश्ता है.

जज़्बात में गर दिले नादां चुपचाप हो,
रुलाकर आबशार कर गया, वो दिल का रिश्ता है.

मिटाया चमन, लुटाया चमन, गंवाया चमन,
हराकर दिलदार कर गया, वो दिल का रिश्ता है.
                                         (अभय श्रीवास्तव)

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