हिंदी कविता का अथेंटिक ठिकाना

शुक्रवार, 19 अप्रैल 2013

आज मैं रो रहा हूं !

ऐसा तो पाषाण युग में नहीं होता रहा होगा...
नहीं होता रहा होगा तब भी
आदमी जब बंदर था...

उससे बलात्कार हुआ
योनि में 3 मोमबत्तियां, कांच की शीशी...

आह !
5 साल की मासूम
कितनी बेज़ार हो चीखी होगी...

हुक्मरानों सुन रहे हो !
बेईमानों सुन रहे हो !
क्या कान का पर्दा नहीं फटा?
                                         (अभय श्रीवास्तव)

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