कोई क़िताबों में मेरी खुशबू रखता.
मैं ग़रीब हूं यूं बदन के आंसू रखता.
जज़्बात भरे कागज़ तो बहुत मोड़े,
मुट्ठी में वो ऐसे आरजू रखता.
दर्द-दवा-दिल्लगी सब है लेकिन,
काश ! वो आंखों में लहू रखता.
तेरे बदन और ग़रीबी में फ़र्क नहीं,
कहे भेड़िया भूखा-कैसे काबू रखता.
बिटिया ने चेहरे पे नन्ही हथेली फेरी,
क्यूं न हर कोई ऐसा जादू रखता.
तपाक से मैंने बोल दिया सच,
कब तलक सीने में टापू रखता.
(अभय श्रीवास्तव)
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behatareen
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