रफ़्तार में गिरफ़्तार ख़ुदमुख़्तार.
ज़िंदगी बना डाली मोटरकार.
पों-पों, चिल्ल-पों, घुर्र-घुर्र,
ज़िंदगी किस भीड़ में फंसी यार.
रास्ता है, दिशा भी, हैं मंज़िलें भी,
ज़िंदगी बस स्टॉपेज़ मांगती रही एकबार.
लेफ़्ट-राइट, यू-टर्न, ओवरटेक,
ज़िंदगी यूं ढूंढ़ती रही रास्ते का ऐतबार.
(अभय श्रीवास्तव)
4 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर! आजकल अनोखे शब्दों पर अच्छा प्रयोग चल रहा है।
विचार
गहरे तक मन को भेदते हैं
सन्देश देती रचना
बधाई सार्थक लेखन के लिये
आग्रह है मेरे ब्लॉग में भी सम्मिलित हों ख़ुशी होगी
आपकी अनोखे अंदाज मे प्रस्तुत यह रचना निर्झर टाइम्स पर लिंक की जा रही,कृपया http://nirjhar-times.blogspot.com का अवलोकन करें। आपकी प्रतिक्रिया एवं सुझावों का सादर आमन्त्रण है।
Atiutam-**
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