हिंदी कविता का अथेंटिक ठिकाना

बुधवार, 6 फ़रवरी 2013

जीना चाहती हो तो लड़ो

तुम औरत हो,
तुम वेश्या हो,
तुम्हे तो एड्स भी है.

एक साथ
कैसे ढोती हो इन चीज़ों को !

क्या?
मरना चाहती हो?
मारना भी चाहती हो?

तुमने ज़रूर सपना देखा होगा
मगर अब तक
आंखें नहीं फूटी तुम्हारी
शायद
तुम जीना चाहती हो !

तुम औरत हो,
तुम वेश्या हो,
तुम्हें तो एड्स भी है.

बोलो
लड़ना चाहती हो न !
लड़ो !
लड़ो !
लड़ो !
                                    (अभय श्रीवास्तव)

2 टिप्‍पणियां:

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

गहन अभिव्यक्ति....
झकझोरती...
अनु

flyin ने कहा…

kafi aachi lagi aap ki kavita

बातें करनी है तो...

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