हिंदी कविता का अथेंटिक ठिकाना

मंगलवार, 19 फ़रवरी 2013

इलेक्ट्रॉनिक बानर

ओए !
इलेक्ट्रॉनिक बानर.
प्रोग्राम्ड !

धत तेरी की,
ये कैसी उछलकूद !
नहीं छीना,
तश्तरी में रखा अमरूद !

हो हो कर हंसा बच्चा.
तुझे लाज भी न आई.
बना फिरता है मैच्योर्ड !
प्रोग्राम्ड !
ओए !
इलेक्ट्रॉनिक बानर.

चोप्प !
खिस-खिस कर हंसता है.
अब तेरा गुर्राना कहां है?
मदारी ने रस्सी डाली थी,
तब भी तू ऐसा न था.
ईडियट !

बच्चा बहुत उदास है अब,
तेरी हंसी पहचानता है.
डिस्गस्टिंग, इल-कल्चर्ड !
प्रोग्राम्ड !
ओए !
इलेक्ट्रॉनिक बानर.

जंगल-मंगल भूला तू.
बैटरी ऑपरेटेड.
उफ्फ ! कैसी लाइफ-साइकिल?
लोभी-झूठा-कपटी,
तू सॉफस्टिकेटेड हो रहा है,
मगर प्रगतिशील नहीं.

बच्चा कन्फ्यूज्ड है,
सच के प्रतिमान ढूंढ़ नहीं पाता.
डैम शिट, डूम्ड !
प्रोग्राम्ड !
ओए
इलेक्ट्रॉनिक बानर.
                                         (अभय श्रीवास्तव)

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