हिंदी कविता का अथेंटिक ठिकाना

शनिवार, 16 फ़रवरी 2013

दुनियादारी

दुकानदारी के ठेठ अंदाज़ में,
5-7 साल की वो बच्ची,
धनिया बेच रही थी.

मैं चालीस साला ग्राहक,
उससे मोल-भाव में जुटा था.

दरअसल,
दुनियादारी सीखने के लिए,
कौन कहता है कि,
उम्रदराज़ होना पड़ता है.

और..
कौन कहता है,
उम्र होने पर,
बचपना छूट जाता है.
                                            (अभय श्रीवास्तव)

4 टिप्‍पणियां:

रश्मि प्रभा... ने कहा…

उम्र,अनुभव - समय के पलड़े पर कहाँ ऊपर होंगे,कहाँ नीचे ---- कहना मुश्किल है

Unknown ने कहा…

True!

Netaji ने कहा…

Right said...

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

सच कहा.....

अनु

बातें करनी है तो...

संपर्क -
ई-पता : aabhai.06@gmail.com
दूरभाष : +919811937416

@ Copyrights:

कंटेट पर कॉपीराइट सुरक्षित है. उल्लंघन पर विधिमान्य तरीकों से चुनौती दी जा सकती है.