दुकानदारी के ठेठ अंदाज़ में,
5-7 साल की वो बच्ची,
धनिया बेच रही थी.
मैं चालीस साला ग्राहक,
उससे मोल-भाव में जुटा था.
दरअसल,
दुनियादारी सीखने के लिए,
कौन कहता है कि,
उम्रदराज़ होना पड़ता है.
और..
कौन कहता है,
उम्र होने पर,
बचपना छूट जाता है.
(अभय श्रीवास्तव)
4 टिप्पणियां:
उम्र,अनुभव - समय के पलड़े पर कहाँ ऊपर होंगे,कहाँ नीचे ---- कहना मुश्किल है
True!
Right said...
सच कहा.....
अनु
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