हिंदी कविता का अथेंटिक ठिकाना

बुधवार, 23 जनवरी 2013

बृजेश नीरज की ग़ज़ल

जाने कैसे ये सब हो गया
मुकद्दर मेरा तमाशा बन गया

गुजरो जिधर देखते हैं गौर से
आदमी था एक अजूबा बन गया

बार बार देखी सूरत ये अपनी
चेहरे पर कैसे ये धब्बा बन गया

दिल में तो थीं इंकलाब की बातें
तेरी उल्फत में दीवाना बन गया

मशहूर होना तो इसे भी मानो
नाम हुआ बदनाम बन गया  
                         (बृजेश नीरज)


लखनऊ के ग़ज़लकार बृजेश नीरज अपनी सरोकारी ग़ज़लों के लिए मशहूर हैं.


3 टिप्‍पणियां:

Anju (Anu) Chaudhary ने कहा…

बहुत खूब

Umesh Maurya ने कहा…


Baut aachi, Sundar

Unknown ने कहा…

मुझे यहां स्थान दिया इसके लिए धन्यवाद!

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