हिंदी कविता का अथेंटिक ठिकाना

बुधवार, 16 जनवरी 2013

जश्न को छोड़ो, शोक मनाओ !!

समाज के तंत्र को उद्वेलित करने वाली दिल्ली बस गैंगरेप की वारदात को एक महीने हो गए हैं. लेकिन बदलाव सिर्फ नारों से नहीं होगा. देवी नागरानी अपने इन शब्दों से बदलाव की क्रांति का आह्वान कर रही हैं.

उट्ठो सपूतों देश के आओ
देश का गौरव आप बढ़ाओ

देश की बेटी अपनी बेटी
उसकी मौत का शोक मनाओ

प्रण लेना है आज सभी को
ममता को इंसाफ़ दिलाओ

नारी की है मांग सुरक्षा
नारों से अब मत भरमाओ

नारों से क्या होगा लोगों
नारी को सम्मान दिलाओ

खूब हो सोये जागो अब तो
ममता का कुछ कर्ज़ चुकाओ

घूम रहे आज़ाद दरिंदे
सख़्त सज़ा उनको दिलवाओ

मां वो बहन और बेटी देवी
मान उसे दो खुद भी पाओ
                     देवी नागरानी
अविभाजित भारत के कराची में जन्मीं देवी नागरानी जानी-मानी साहित्यकार हैं.  सिंधी, हिंदी और अंग्रेजी भाषाओं में आपकी दस से ज्यादा पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं. अमेरिका के न्यू जर्सी में बतौर शिक्षिका जीवन यापन करने वाली देवी नागरानी को साहित्य के कई प्रतिष्ठित पुरस्कार मिल चुके हैं.

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