हिंदी कविता का अथेंटिक ठिकाना

शनिवार, 29 दिसंबर 2012

तुमने मुझे बलात्कृत किया, क्यों?

(16 दिसंबर 2012 की मनहूस शाम को दिल्ली की बस में सवार हुई लड़की के नाम)

चहकती थी
चमकती थी
सपने थे
अपने थे
प्रेम प्रकाश से थी उद्दीप्त,
तुम भुजंग मेरी आत्मा डंस गए.

मुझे बस योनि माना !
क्षणभंगुर हो,
अपना पंचतत्व प्रदूषित कर
मेरी देह नोचने लगे.
हे मृतमानव !
तुमने मुझे बलात्कृत किया, क्यों?
मेरी देह तो नश्वर थी
बूढ़ी होती, मृत होती.

योनि की पवित्रता से तुम भी जन्मे थे !
आंचल में ढक
तुम भी कर्जदार हुए होगे
फिर कहां रही चूक?
हे अभागे !
जननी के प्राण की सौगंध भुला बैठे, क्यों?
नारीत्व मात्र देहत्व,
ये क्योंकर सीखा तुमने.

जो योनि घायल न होती !
रचती सृष्टि
कुछ पुष्प लहकते, चिड़िया उगती
हा..हा.. तुमने नष्ट की अनमोल कृति
हे विध्वंसक !
मेरी प्राणवायु तुम लूट गए, क्यों?
देह स्थूल भले स्थिर हो अब,
प्रश्नवाची सूक्ष्म मन तरंगित है.

रोकनी होगी योनियों की चीत्कार !
मारना होगा तुम्हारे राक्षस को
पौरुषत्व के पिंजड़े को खोलना होगा
बांधना होगा तुम्हारा स्खलन
हे पथभ्रष्ट !
ज्ञान-विज्ञान तुममें निष्क्रिय हुआ, क्यों?
देह का दर्शन जगाना होगा,
सदियां लांघनी होगी.

                                 (अभय श्रीवास्तव)

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