हिंदी कविता का अथेंटिक ठिकाना

बुधवार, 26 दिसंबर 2012

रूह की बगावत

नृत्य करना चाहती है रूह,
मौन आंखों में !

कांधे पे सवार
सुफ़ेद परछाईं पटककर
सलीबों पर ख़्वाइशें टांग
ज़ोर से, शोर से.

नि:शब्द क्रांति चाहती है रूह,
मौन आंखों में !

दिल्ली की हनहनाती बस में,
बलात्कृत पौरुष की
चीखती तस्वीरों को,
अब और मोज़ैक करना नहीं चाहती.

बोलना चाहती है रूह,
मौन आंखों में !

अमरीका के अभागे स्कूल में,
गोलियों की चीत्कार से
सो गए-बहरे हुए बच्चों पर
अब आंसू नहीं ढुलकाना चाहती.

बंदूकों को जलाना चाहती है रूह,
मौन आंखों में !

पाकिस्तान की मलाला का,
जयघोष करती है
तालिबान के ख़ौफ़ को, सोच को
अब ओढ़ना-बिछाना नहीं चाहती.

प्रतिकार चाहती है रूह,
मौन आंखों में !
                                             (अभय श्रीवास्तव)

4 टिप्‍पणियां:

विनोद अग्रहरि ने कहा…

रूहानी!

deepak ने कहा…

Acchi poem but mujhe 1-2 jagah samajh nahi aayi

BALRAMPUR ने कहा…

बढिया

kahekabeer ने कहा…

धन्यवाद मित्रों

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