नृत्य करना चाहती है रूह,
मौन आंखों में !
कांधे पे सवार
सुफ़ेद परछाईं पटककर
सलीबों पर ख़्वाइशें टांग
ज़ोर से, शोर से.
नि:शब्द क्रांति चाहती है रूह,
मौन आंखों में !
दिल्ली की हनहनाती बस में,
बलात्कृत पौरुष की
चीखती तस्वीरों को,
अब और मोज़ैक करना नहीं चाहती.
बोलना चाहती है रूह,
मौन आंखों में !
अमरीका के अभागे स्कूल में,
गोलियों की चीत्कार से
सो गए-बहरे हुए बच्चों पर
अब आंसू नहीं ढुलकाना चाहती.
बंदूकों को जलाना चाहती है रूह,
मौन आंखों में !
पाकिस्तान की मलाला का,
जयघोष करती है
तालिबान के ख़ौफ़ को, सोच को
अब ओढ़ना-बिछाना नहीं चाहती.
प्रतिकार चाहती है रूह,
मौन आंखों में !
(अभय श्रीवास्तव)
4 टिप्पणियां:
रूहानी!
Acchi poem but mujhe 1-2 jagah samajh nahi aayi
बढिया
धन्यवाद मित्रों
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