2013 की चंचलता नई उम्मीदें लेकर आई हैं. 2012 की बूढ़ी आंखों ने एक बेटी के साथ ज़ुल्म की जो इंतहा देखी है, विनाश की जो लीला देखी है, उसे ये नया वर्ष आदिम युग की बात बना देना चाहता है. नया वर्ष सृजन का नया ग्रंथ लिखना चाहता है. धर्मवीर भारती ने कनुप्रिया में राधा-कृष्ण प्रसंग का चित्रण किया है, उसमें सृजन संगीत है, जो संगिनी बन कर जीवन की नई राह दिखा रहा है. नए वर्ष पर इस ब्लॉग पर सृजन संगिनी का वही गीत प्रस्तुत है. (मॉडरेटर)
सुनो मेरे प्यार-
यह काल की अनन्त पगडण्डी पर
अपनी अनथक यात्रा तय करते हुए सूरज और चन्दा,
बहते हुए अन्धड़
गरजते हुए महासागर
झकोरों में नाचती हुई पत्तियां
धूप में खिले हुए फूल, और
चांदनी में सरकती हुई नदियां
इन का अन्तिम अर्थ आखिर है क्या?
केवल तुम्हारी इच्छा?
और वह क्या केवल तुम्हारा संकल्प है
जो धरती में सोंधापन बन कर व्याप्त है
जो जड़ों में रस बन कर खिंचता है
कोंपलों में फूटता है,
पत्तों में हरियाता है,
फूलों में खिलता है,
फलों में गदरा आता है-
यदि इस सारे सृजन, विनाश, प्रवाह
और अविराम जीवन-प्रक्रिया का
अर्थ केवल तुम्हारी इच्छा है
तुम्हारा संकल्प,
तो जरा यह तो बताओ मेरे इच्छामय,
कि तुम्हारी इस इच्छा का,
इस संकल्प का-
अर्थ कौन है?
कौन है वह
जिस की खोज में तुम ने
काल की अनन्त पगडण्डी पर
सूरज और चांद को भेज रक्खा है
.....................................................
कौन है जिसे तुम ने
झंझा के उद्दाम स्वरों में पुकारा है
.....................................................
कौन है जिस के लिए तुम ने
महासागर की उत्ताल भुजाएं फैला दी हैं
कौन है जिस की आत्मा को तुम ने
फूल की तरह खोल दिया है
और कौन है जिसे
नदियों जैसे तरल घुमाव दे-दे कर
तुम ने तरंग-मालाओं की तरह
अपने कण्ठ में, वक्ष पर, कलाइयों में
लपेट लिया है-
वह मैं हूं मेरे प्रियतम !
वह मैं हूं
वह मैं हूं
(धर्मवीर भारती)
2 टिप्पणियां:
Bahut Hi sashakt shabdavalee. Dharamveer ji ke bare mein Bahut sunne ko milta hai jab pushpa ji se milna hota hai.
बेशक धर्मवीर जी की शब्दावलियों और विचार का तो कोई जवाब नहीं
एक टिप्पणी भेजें