हिंदी कविता का अथेंटिक ठिकाना

सोमवार, 17 दिसंबर 2012

हरिदास का सपना

सपने हरिदास भी बुनता है।

फुटपाथ पर अखबार बेचने का धंधा है।
मार्क्स से लेकर शिवखेड़ा तक की,
किताबें भी बिछा रखी हैं उसने।
दुकान पर कुछ देर तक ठिठकने वालों से,
किताबों का मर्म गुनता है।
सपने हरिदास भी बुनता है।

किताबों के एमआरपी पर,
दस परशेंट का डिस्काउंट है।
चूंकि किताबों की पैकिंग में,
विचार बेचता है हरिदास
इसीलिए बाज़ार की भाषा चुनता है।
सपने हरिदास भी बुनता है।

दिन भर में दो मार्क्स बिके एक गोर्की,
सावरकर की तीन प्रतियां भी हाथों-हाथ ली गईं।
चंद अनाम लेखकों को भी पाठक मिले।
कमाई का हिसाब-किताब लगा हरिदास,
पत्नी से कबीर के निर्गुण सुनता है।
सपने हरिदास भी बुनता है।

                         (अभय श्रीवास्तव)

4 टिप्‍पणियां:

deepak ने कहा…

Nice one

kahekabeer ने कहा…

धन्यवाद दीपक

KK Yadav ने कहा…

बेहतरीन रचना . बधाई स्वीकारें।

kahekabeer ने कहा…

धन्यवाद सर

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