अदम गोंडवी की आज (18 दिसंबर) पहली बरसी है. एक छोटे से शहर यूपी के गोंडा के एक अति पिछड़े गांव आटा परसपुर में जीवन गुजारने वाले अदम गोंडवी ने अपने शब्दों से एक सदी को उद्वेलित किया है. उन्हें उनकी ग़ज़लों से ही श्रद्धा के दो फूल...
1.
काजू भुने पलेट में विस्की गिलास में
उतरा है रामराज्य विधायक निवास में
पक्के समाजवादी हैं तस्कर हों या डकैत
इतना असर है खादी के उजले लिबास में
आज़ादी का ये जश्न मनाएं वे किस तरह
जो आ गए फुटपाथ पर घर की तलाश में
पैसे से आप चाहें तो सरकार गिरा दें
संसद बदल गई है यहां की नख़ास में
जनता के पास एक ही चारा है बग़ावत
यह बात कह रहा हूं मैं होशोहवास में
2.
न महलों की बुलंदी से न लफ़्जों के नगीने से
तमद्दुन में निखार आता है घीसू के पसीने से
अब मर्क़ज़ में रोटी है, मुहब्बत हाशिए पर है
उतर आई ग़ज़ल इस दौर में कोठी के ज़ीने से
अदब का आइना उन तंग गलियों से गुज़रता है
जहां बचपन सिसकता है लिपट कर मां के सीने से
बहारे-बेकिरां में ता क़यामत का सफ़र ठहरा
जिसे साहिल की हसरत हो उतर जाए सफ़ीने से
अदीबों की नई पीढ़ी से मेरी ये गुज़ारिश है
संजो कर रक्खें 'धूमिल' की विरासत को क़रीने से
3.
चांद है ज़ेरे क़दम, सूरज खिलौना हो गया
हां, मगर इस दौर में क़िरदार बौना हो गया
शहर के दंगों में जब भी मुफ़लिसों के घर जले
कोठियों की लॉन का मंज़र सलौना हो गया
ढो रहा है आदमी कांधे पे, ख़ुद अपनी सलीब
ज़िंदगी का फ़लसफ़ा जब बोझ ढोना हो गया
यूं तो आदम के बदन पर भी था पत्तों का लिबास
रूह उरियां क्या हुई मौसम घिनौना हो गया
'अब किसी लैला को भी इक़रारे-महबूबी नहीं'
इस अहद में प्यार का सिम्बल तिकोना हो गया

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