हिंदी कविता का अथेंटिक ठिकाना

सोमवार, 10 दिसंबर 2012

भूख-भय की रोटी

भूख-भय की रोटी।
किस्मत कितनी खोटी !
डरता रहा स्वयं से,
गीली हुई लंगोटी !

खिस-खिस, हू-हू।
हे-हे आहू।
हुन-हुन, टुन-टुन,
तोंद फुलाए साहू।

लाल बुझक्कड़, गाल फुलक्कड़।
पूंछ उठाए, भाल(1) भुलक्कड़।
जीवन की आपाधापी में,
बस अक्कड़-बक्कड़ निरा पियक्कड़।

दर्शन बना प्रदर्शन।
दुर्योधन ले दौड़ा चक्र सुदर्शन।
जंतर-मंतर, भूल भुलावा,
भ्रष्टासुर(2) का मर्दन।

मुश्किल दो दूनी का अंकगणित।
लेकिन अंखियां बन बैठीं रत्नजड़ित।
संबंधों की जामेट्री में,
तिर्यक रेखाएं अगणित।

आसमान ले उड़ा कबूतर।
ज्ञानी बड़ा 'चबूतर'(3)।
ढोल बजाए, शोर मचाए,
चंदन लकड़ी लोटे सांप-छछूंदर।

1. मस्तक
2. भ्रष्टाचार रूपी असुर
3. ढपोरशंखी को कवि द्वारा दिया गया उपमान



2 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

सार्थक कोशिश। जमे रहो प्यारे।
पीयूष

MAHENDRA SAINI ने कहा…

प्यारे-प्यारे कवि हमारे
अभय जी श्रीवास्तव भैया हमारे
कोटला पर भी कभी सुनाते थे कविता ये प्यारे
बस नहीं कुछ कर पाते तो न्यूजरूम में ये बेचारे

बहुत उत्तम भैया.... सर्वोत्तम
इब्ने बतूता

बातें करनी है तो...

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दूरभाष : +919811937416

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