(मेरी आज की कविता)
छेड़ेंगे लड़ाई ‘आप’ से
खुद के संताप से
हर हार पर
हाहाकार पर
नहीं हारेंगे
तूफां में बढ़ेंगे चाप से
छेड़ेंगे लड़ाई ‘आप’ से
घेरेगी ‘मृत्यु’
पर, श्मशान पहुंचे न मान
कर दो ऐलान
नहीं गुम जाएंगे
भय के विलाप से
छेड़ेंगे लड़ाई ‘आप’ से
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें