हिंदी कविता का अथेंटिक ठिकाना

गुरुवार, 24 सितंबर 2015

मुल्क के मायने

तुम ज़रा सी ज़मीं होती,
मैं इक कतरा आसमान होता।


तुम ज़रा सी ज़मीं होती,
मैं इक कतरा आसमान होता।
राहगीरों को मयस्सर,
यूं सारा हिंदोस्तान होता।

बहुत गड्ढे हैं,
मुल्क की सड़कों पर,
जो कोई पत्थर पिघल जाता,
हर रास्ता आसान होता।


तकरीरों में सुना है,
रामधन का जिक्र खूब।
काश वो भी,
यूं ना बेज़बान होता।

तरक्की के इंडेक्स में,
मुल्क आगे बढ़ गया।
लेकिन खुशहाली की शर्त थी,
कि हर शख़्स बस इंसान होता।

इंकलाब ज़िंदाबाद होता,
हर गूंज में प्राण होता।
जो सर कटाने के हौसले होते,
मुल्क का अभिमान होता।
                     (अभय श्रीवास्तव)

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