हिंदी कविता का अथेंटिक ठिकाना

शनिवार, 11 मई 2013

ग़रीबी

इक शरारत है ग़रीबी
अपनी आदत है ग़रीबी

दुनिया तुझसे रूठे हैं हम,
अजीब अदावत है ग़रीबी

महफूज नहीं रहे अहसास हमारे,
आपकी शिकायत है ग़रीबी

वजूद पे पैबंद लगा है अब,
वक़्त की इनायत है ग़रीबी

हर गुनाह में शामिल रहा है ज़माना,
उफ ! बड़ी कयामत है ग़रीबी

                                                  (अभय श्रीवास्तव)

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