इक शरारत है ग़रीबी
अपनी आदत है ग़रीबी
दुनिया तुझसे रूठे हैं हम,
अजीब अदावत है ग़रीबी
महफूज नहीं रहे अहसास हमारे,
आपकी शिकायत है ग़रीबी
वजूद पे पैबंद लगा है अब,
वक़्त की इनायत है ग़रीबी
हर गुनाह में शामिल रहा है ज़माना,
उफ ! बड़ी कयामत है ग़रीबी
(अभय श्रीवास्तव)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें