हिंदी कविता का अथेंटिक ठिकाना

शनिवार, 5 जनवरी 2013

जीवन की सबसे गूढ़ कविता

मेरी आंख पर चश्मा है
माथे पर पसीना है
ओठ सूख रहे हैं.

हां
मैं परेशान हूं
कहीं सुना है मैंने
जीवन
एक कविता है.
मैं भी
कविता में एक कहानी हूं.

कहानी का नायक हूं मैं
सभी किसी न किसी कहानी के
नायक होते हैं.

कहानी में चरित्र सुलझा हुआ है
मगर सीधा और सपाट नहीं
सीन दाल-रोटी के जुगाड़ का है.

मेरी रोटी
कौआ छीन रहा है
दाल बिल्ली खा गई है
नया शौक चर्राया है उसे.

लोकेशन बदलती है

चार लोग खड़े हैं
दूर ठिठके कुछ और लोग भी हैं
लेकिन मैं उन्हें देख नहीं पा रहा
चार में से दो
मुझसे झगड़ा कर रहे हैं
बाकी दो
उन दोनों से झगड़ा कर रहे हैं
लेकिन
कौन किससे झगड़ा कर रहा
कुछ पता नहीं चलता
लगता है चारों मुझसे झगड़ा कर रहे हैं
मगर ये भी लगता है
चारों मेरे लिए झगड़ा कर रहे हैं

खैर !
कुछ भी हो
तमाशबीन ताली बजा रहे हैं
दरअसल
झगड़े में मेरा सिर फूटा
और तो और
किसी तमाशबीन की आवाज़ में
तलवार की तेज़ी थी
मेरी गर्दन
उल्टी होकर
धड़ से झूलने लगी है.

अब फिर नया सीन आ गया

माथे पर हाथ रखकर
सिर झुकाए मैं बैठा हुआ हूं.

तभी मेरी बेटी आती है
कहती है पापा पोयम चुनो
चुनो ना.

हाथी लाजा हाथी लाजा
आ जा- आ जा- आ जा
बछ.

मेरी बेटी
मुझे पोयम सुनाती है
मैं उसे सीने से लगाता हूं
मेरे चेहरे पर खुशी तैरने लगती है.

बेटी की पोयम
तमाम ग्रंथों से
ज़्यादा गूढ़ है
पोयम का अर्थ विशाल है
अपरंपार भी.

असल में
जीवन एक कविता है
हर कोई
एक कविता में एक कहानी है.

                                                      (अभय श्रीवास्तव)

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