हिंदी कविता का अथेंटिक ठिकाना

गुरुवार, 3 जनवरी 2013

देवेन्द्र पाठक 'महरूम' की ग़ज़लें

1.
सूरत उसकी जितनी उजली,
सूरत है उतनी ही गंदली.
देखो खूब सुनो जी भर कर,
देंगे काट उठी गर अंगुली.
ताकतवर ने गोली दागी,
कमज़ोरों को गाली उगली.
फ़सल पसीने के मोतियों की,
हंस बन कौओं ने चुग ली.
और झुका मत टूट जाएगी,
रीढ़ आखिरी हद तक झुक ली.

2.
मत हार मान पाल तू मुगालता कोई
आसां ओ बेहतर न इससे रास्ता कोई
'महरूम' दाग-ए-दामन देखे हैं औरों के
अपने ही ग़िरेबां मेँ नहीं झांकता कोई.












मध्यप्रदेश के कटनी में रहने वाले देवेन्द्र पाठक 'महरूम' जाने-माने ग़ज़लकार हैं.

1 टिप्पणी:

Devi Nangrani ने कहा…

Abhay ji

मत हार मान पाल तू मुगालता कोई
आसां ओ बेहतर न इससे रास्ता कोई
Pathak ji ki ghazals padhwane ke liye bahut sadhuwaad. ache kafiyon se wakif hone ke sambhavana banee rahe.

बातें करनी है तो...

संपर्क -
ई-पता : aabhai.06@gmail.com
दूरभाष : +919811937416

@ Copyrights:

कंटेट पर कॉपीराइट सुरक्षित है. उल्लंघन पर विधिमान्य तरीकों से चुनौती दी जा सकती है.