हिंदी कविता का अथेंटिक ठिकाना

रविवार, 27 जनवरी 2013

भारत-पाक रिश्तों के बरक्स मंटो

पिछले दिनों नियंत्रण रेखा पर 2 भारतीय सैनिकों की नृशंस हत्या के बाद भारत में पाकिस्तान के खिलाफ एक हिस्टीरिया बन गया. दलील दी जा सकती है कि यह स्वाभाविक था. लेकिन यह स्वाभाविकता कितनी नकली थी इसको पाकिस्तान के "प्रेमचंद" सआदत हसन मंटो की यह कहानी "यजीद" बहुत मार्मिक तरीके से समझाती है. 
(जिन पाठकों को यजीद शब्द का अर्थ न पता हो, उनके लिए बस इतना ही कि यजीद ने ही पैगंबर मोहम्मद के नवासे हजरत इमाम हुसैन और उनके घरवालों का क़त्ल किया था. अतएव यजीद शब्द इस्लामिक सोच में सांस्कृतिक-राजनीतिक अहमियत रखता है).

यजीद


सन 1947 के हंगामे हुए और गुजर गए. बिल्कुल उसी प्रकार, जैसे मौसम में सहसा चंद बुरे दिन आएं और चले जाएं. यह नहीं कि करीमदाद, मौला की मर्जी समझकर खामोश बैठा रहा. उसने बड़ी मरदानगी से उस तूफान का मुकाबला किया था. शिकस्त देने के लिए नहीं केवल मुकाबला करने के लिए कई बार बलवाइयों से भिड़ा था. उसे मालूम था कि दुश्मनों की ताकत बहुत अधिक है, पर हथियार डाल देना वह अपनी ही नहीं, प्रत्येक मर्द की तौहीन समझता था.
सच पूछिए तो उसके विषय में यह सिर्फ उन लोगों का ख्याल था जिन्होंने उसे वहशी इंसानों से, बड़ी जांबाजी से लड़ते देखा था. अगर करीमदाद से इस बारे में पूछा जाता कि दुश्मन के मुकाबले में हथियार डाल देना क्या वह अपनी अथवा हर मर्द की तौहीन समझता है तो निश्चय ही वह सोच में पड़ जाता, जैसे आपने उससे हिसाब का कोई मुश्किल प्रश्न पूछ लिया हो.
करीमदाद जोड़-घटा और गुणा-भाग से बिल्कुल अनभिज्ञ था. सन सैंतालीस के हंगामे आए और गुजर गए. लोगों ने बैठकर हिसाब लगाना आरम्भ किया कि कितना जानी नुकसान हुआ है, कितना माली. अगर करीमदाद इससे बिल्कुल अलग रहा, उसको केवल इतना मालूम था कि उसका बाप, रहीमदाद उस जंग में काम आया है. उसकी लाश खुद करीमदाद ने, अपने कांधों पर उठाई थी और वह कुएं के करीब गड्ढा खोदकर दफनाई थी.
गांव में और भी कई वारदातें हुई थीं. सैंकड़ों युवा और बूढ़े कत्ल हुए थे. कई लड़कियां गायब हो गई थीं. कुछ की बहुत जालिमाना तरीके से बेइज्जती हुई थी. जिसको भी ये जख्म लगे वह अपने फूटे नसीबों और दुश्मनों की बेरहमी पर रोता था. मगर करीमदाद की आंख से एक आंसू न निकला. अपने बाप रहीमदाद की शहजोरी पर उसे अभिमान था. जब बर्छियों और कुल्हाड़ियों से लैस पच्चीस-तीस बलवाइयों का मुकाबला करते-करते वह बेजान होकर गिर पड़ा था और करीमदाद को उसकी मौत की सूचना मिली थी जो उसने उसकी रूह को मुखातिब करके इतना कहा था-"यार, तुमने यह ठीक नहीं किया. मैंने तुमसे कहा था कि एक हथियार अपने पास अवश्य रखा करो."
उसने रहीमदाद की लाश उठाकर कुएं के करीब गड्ढा खोदकर दफना दी थी और उसके पास खड़े होकर फातिहा के तौर पर ये चंद शब्द कहे थे- "गुनाह-सवाब का हिसाब खुदा रखता है, अच्छा, तुझे बहिश्त नसीब हो."
रहीमदाद न केवल उसका बाप था, बल्कि बड़ा गहरा दोस्त भी था. दंगाइयों ने उसे बड़ी बेरहमी से कत्ल किया था. लोग जब उसकी दुखद मौत का जिक्र करते तो कातिलों को बड़ी गालियां देते, लेकिन करीमदाद चुप रहता. उसकी कई खड़ी फसलें तबाह हो गई थीं, दो घर जलकर राख हो गए थे पर उसने अपने उन नुकसानों का भी हिसाब नहीं लगाया था.
वह कभी-कभी केवल इतना कहा करता था-'जो कुछ हुआ है हमारी अपनी गलती से हुआ है' और जब कोई उससे इस गलती के विषय में पूछता तो वह चुप रहता.
गांव के लोग अभी दुख में ही डूबे हुए थे कि करीमदाद ने शादी कर ली. उसी मटियार जीनां के संग, जिस पर एक अर्से से उसकी निगाह थी. जीनां बहुत दुखी थी. उसका शहतीर-जैसा कड़ियल जवान भाई दंगों में मर गया था. मां-बाप की मौत के बाद. केवल वही उसका एक सहारा था. इसमें कोई शक नहीं था कि जीनां को करीमदाद से बेपनाह मुहब्बत थी, मगर भाई की मौत के गम ने, उसके मन में इस मुहब्बत को भी मातमी बना दिया था. अब हर वक्त उसकी सदा मुस्कुराती आंखें गीली रहती थीं. करीमदाद को रोने-धोने से बड़ी चिढ़ थी. जब भी वह  जीनां को दुख की हालत में देखता, मन-ही-मन बहुत कुढ़ता. लेकिन वह उससे इस बारे में यह सोचकर कुछ कहता नहीं था कि औरत जात है.  हो सकता है कि उसके दिल को और दुख पहुंचे.
एक रोज उससे न रहा गया. खेत में जीनां को पकड़कर बोला-"मुर्दों को कफनाए-दफनाए पूरा एक साल हो गया है, अब तो वे भी इस दुख से घबरा गए होंगे. अभी जिंदगी में जाने और कितनी मौतें देखनी हैं. थोड़े आंसू तो अपनी आंखों में जमा रहने दो."
जीनां को उसकी ये बातें बहुत बुरी लगी थीं. मगर वह उससे प्यार करती थी इसलिए अकेले में उसने कई घंटे सोच-विचार कर, उसकी इन बातों के अर्थ पैदा किए और आखिर यह समझने पर स्वयं को तैयार कर लिया कि करीमदाद जो कुछ कहता है ठीक है.
ब्याह का सवाल आया तो बड़े-बूढ़ों ने विरोध किया, पर यह विरोध बहुत ही कमजोर था. वे लोग दुख मना-मना कर इतने थक गए थे कि ऐसे मामलों में सौ फीसदी सफल होने वाले विरोधों पर भी अधिक देर तक न जमे रह सके. चुनांचे करीमदाद का ब्याह हो गया. बाजे-गाजे आए, हर एक रस्म पूरी हुई और करीमदाद अपनी महबूबा जीनां को दुल्हन बनाकर घर ले आया. दंगों के बाद करीब-करीब एक साल से सारा गांव कब्रिस्तान बना हुआ था. जब करीमदाद की बारात चली और धूम-धड़क्का हुआ तो गांव में कई आदमी सहम गए. उनको ऐसा लगा कि करीमदाद की नहीं, किसी भूत-प्रेत का ब्याह है.
करीमदाद को उसके मित्रों ने जब यह बात बताई तो वह खूब हंसा. एक दिन हंसते हुए उसने इसका जिक्र अपनी दुल्हन से भी किया तो वह भय के मारे कांपने लगी.
करीमदाद जीनां की लाल चूड़े से सजी कलाई अपने हाथ में लेकर बोला-"यह भूत तो अब पूरी उम्र तुम्हारे साथ लिपटा रहेगा... रहमान साईं की झाड़-फूंक भी उतार नहीं सकेगी."
अपनी मेहंदी से रची हुई उंगली दांतों तले दबाकर और जरा लजाकर जीनां बोली-"कीमे, तुझे तो किसी से भी भय  नहीं लगता."
करीमदाद ने अपनी भूरी मूंछों पर जबान की नोक फेरी और हंस दिया,"डर भी कोई लगने की वस्तु है."
जीनां का दुख अब एक हद तक दूर हो चुका था, वह मां बनने वाली थी. करीमदाद उसकी जवानी का निखार देखता तो बहुत प्रसन्न होकर कहता-"खुदा की कसम जीनां, तू पहले कभी इतनी खूबसूरत  नहीं थी. यदि तू इतनी खूबसूरत अपने होने वाले बच्चे के लिए बनी है तो मेरा झगड़ा हो जाएगा."
यह सुनकर जीनां लजाकर अपना ठिलिया सा पेट चादर से छिपा लेती.
करीमदाद हंसता हुआ उसे छेड़ता-"छिपाती क्यों हो इस चोर को. मैं नहीं जानता कि यह सब बनाव-सिंगार, तुमने केवल उसी सूअर के बच्चे के लिए किया है."
जीनां एकदम संजीदा हो जाती-"क्यों गाली देते हो खुद को?"
करीमदाद का कालापन लिए भूरी मूंछें हंसी से कंपकंपाने लगतीं-"करीमदाद बहुत ही बड़ा सूअर है."
छोटी ईद आई. बड़ी ईद आई. करीमदाद ने ये दोनों पर्व बड़े ठाठ से मनाए. बड़ी ईद के बारह दिन पूर्व ही उसके गांव पर बलवाइयों ने हमला किया था और उसका बाप रहीमदाद तथा जीनां का भाई फजल इलाही मारे गए थे. जीनां उन दोनों की मौत को याद कर बहुत रोई थी. मगर दुखों को याद न करने वाली, करीमदाद की तबीयत की मौजूदगी में उतना शोक न कर सकी, जितना उसे खुद अपनी तबीयत के अनुसार करना चाहिए था.
जीनां कभी सोचती तो उसको बड़ा आश्चर्य होता था कि वह इतनी जल्दी जिंदगी का इतना बड़ा दुख कैसे भूलती जा रही है. मां-बाप की मौत उसे बिल्कुल याद नहीं थी.  फजल इलाही उससे छह वर्ष बड़ा था, वही उसका बाप था, वही उसकी मां और वही उसका भाई. जीनां अच्छी तरह जानती थी कि केवल उसी की खातिर उसने शादी नहीं की. और यह तो गांव को पता था कि जीनां की अस्मत बचाने के लिए उसने अपनी जान कुर्बान की थी. उसकी मौत जीनां के जीवन में एक हादसा, एक कयामत थी, जो बड़ी ईद से ठीक बारह दिन पूर्व उस पर एकाएक टूट पड़ी थी. अब वह उसके विषय में सोचती थी उसको बड़ी हैरत होती थी कि वह उसके असर से बहुत दूर होती जा रही है.
मुहर्रम पास आए तो जीनां ने करीमदाद से पहली फरमाइश जाहिर की. उसे मुहर्रम का घोड़ा तथा ताजिए देखने का शौक था. अपनी सहेलियों से वह उनके बारे में बहुत कुछ सुन चुकी थी. इसीलिए, उसने करीमदाद से कहा-" मैं अच्छी हुई तो ले चलोगे मुझे घोड़ा दिखाने?"
करीमदाद मुस्कुराकर उत्तर दिया-"तुम ठीक न भी हुईं तो भी ले चलूंगा.. इस सूअर की औलाद को भी."
जीनां को यह गाली बहुत ही बुरी लगती थी, इसीलिए अक्सर वह बिगड़ जाती थी. पर करीमदाद के बात करने का तरीका इतना खुलूसभरा था कि जीनां की कटुता एक अकथनीय मिठास में तब्दील हो जाती थी और वह सोचती थी कि 'सूअर के बच्चे' में कितना स्नेह कूट-कूट कर भरा है.
हिन्दुस्तान और पाकिस्तान की जंग की अफवाह एक समय से उड़ रही थी. असल में तो पाकिस्तान बनते ही, यह बात जैसे एक प्रकार से तय हो गई थी कि जंग होगी और जरूर होगी. कब होगी, इसके विषय में गांव में किसी को मालूम नहीं था.
करीमदाद से जब कोई इस बारे में प्रश्न करता तो वह एक छोटा सा जवाब देता, जब होनी होगी, हो जाएगी. फिजूल सोचने से क्या लाभ?
जीनां जब इस होने वाली लड़ाई के विषय में सुनती तो उसके होश उड़ जाते थे. वह अपने स्वभाव से अत्यंत शांतप्रिय थी. मामूली तू-तू मैं-मैं से बहुत घबरा जाती थी. इसके अतिरिक्त पिछले दंगों में उसने बहुत मार-काट देखी थी और उन्हीं में उसका प्यारा भाई फजल इलाही काम आया था. बहुत सहमकर वह करीमदाद से केवल इतना कहती-"कीमे, क्या होगा?"
करीमदाद मुस्कुरा देता-"मुझे क्या पता, लड़का होगा अथवा लड़की."
यह सुनकर जीनां बहुत ही जिच-बिच होती, पर तुरंत ही करीमदाद की बातों में लगकर होने वाली जंग के विषय में सबकुछ भूल जाती. करीमदाद ताकतवर था, निडर था, जीनां से उसको बहुत मुहब्बत थी. बंदूक खरीदने के बाद वह थोड़े ही समय में निशाने का बहुत पक्का हो गया था. ये सब बातें जीनां को बहुत हौसला दिलाती थीं. लेकिन इसके बावजूद जब वह अपनी किसी भयभीत हुई सहेली से जंग के बारे में, गांव के आदमियों की उड़ाई हुई भयावह अफवाहें सुनती तो एकदम सुन्न हो जाती.
बख्तो दाई जो हर रोज जीनां को देखने आती थी, एक रोज यह खबर लाई कि जिस दरिया में हम खेतों को सींचते हैं हिंदुस्तान वाले उस दरिया को बंद करने वाले हैं.
जीनां ने थोड़ी देर सोचा और हंसकर कहा-"मौसी, तुम भी क्या पागलों की सी बातें करती हो? कोई दरिया बंद कर सकता है... वह भी कोई मौरियां हैं."
बख्तो ने जीनां के पेट पर मालिश करते हुए कहा-"बीवी, मुझे पता नहीं. जो मैंने सुना, तुम्हें बता दिया. यह बात तो अखबारों में छप गई है."
"कौन सी बात?"
"यही कि वो दरिया बंद करने वाले हैं. कहते ही बख्तो ने जीनां के पेट पर कमीज खींची और बड़े ही माहिराना लहजे में कहा-"अल्लाह खैर रखे, बच्चा आज से पूरे दस रोज बाद हो जाना चाहिए."
करीमदाद घर आया तो जीनां ने सबसे पहले उससे दरियाओं के विषय में पूछा. उसने पहले बात टालनी चाहिए पर जीनां ने जब कई दफा अपना सवाल दोहराया तो करीमदाद बोला-"हां, कुछ ऐसा ही सुना है."
जीनां ने पूछा-"कैसा?"
"यही कि हिंदुस्तान के खैरख्वाह हमारे दरिया बंद कर देंगे?"
"क्यों?"
करीमदाद ने उत्तर दिया -"ताकि, हमारी फसलें तबाह हो जाएं."
यह सुनकर जीनां को यकीन हो गया कि दरियां बंद किए सकते हैं. चुनांचे बड़ी बेचारगी की हालत में उसने  केवल इतना कहा-"कितने जालिम हैं ये लोग"
करीमदाद इस दफा कुछ देर के बाद मुस्कुराया-"हटाओ इसको. यह तो बताओ बख्तो मौसी आई थी?"
जीनां ने बेदिली से उत्तर दिया-"आई थी"
"क्या कहा?"
"कहती थी आज से पूरे दस रोज बाद बच्चा हो जाएगा."
करीमदाद ने नारा सा लगाया-"जिंदाबाद"
जीनां को यह पसंद नहीं आया. वह बड़बड़ाई -"तुम्हे खुशी हो रही है. यहां जाने कैसी करबला आने वाली है."
करीमदाद चौपाल चला गया. जहां करीब-करीब सारे मर्द जमा थे और चौधरी नत्थू के घेरे, उससे दरिया बंद करने वाली खबर के विषय में पूछ रहे थे. कोई पंडित नेहरू को पेट भर के गालियां दे रहा था और कोई बद्दुआएं मांग रहा था. कोई यह मानने से ही बिल्कुल इनकार कर रहा था कि दरियाओं को रुख बदला जा सकता है. कुछ ऐसे भी थे, जिनका यह विचार था कि जो कुछ होने वाला है, वह हमारे गुनाहों की सजा है. इसे टालने के लिए सबसे बढ़िया तरीका यही है कि मिलकर मस्जिद में दुआ मांगी जाए.
करीमदाद एक कोने में बैठा खामोश सुनता रहा. हिन्दुस्तान वालों को गाली देने में चौधरी नत्थू सबसे आगे था. करीमदाद कुछ इस प्रकार बार-बार पहलू बदल रहा था मानो उसे बहुत कोफ्त हो रही है. सब एक जबान होकर कह रहे थे, दरिया बंद करना एकदम ओछा हथियार है, इंतिहाई कमीनापन है, नीचता है, बेपनाह जुल्म है, बदतरीन गुनाह है, यजीदापन है.
करीमदाद दो-तीन दफा इस तरह खांसा जैसे कुछ कहने के लिए खुद को  तैयार कर रहा हो. चौधरी नत्थू के मुंह से जब मोटी-मोटी गालियों की पुन: लहर उठी तो करीमदाद चिल्ला पड़ा-"गाली न दो चौधरी किसी को." मां की एक बहुत बड़ी गाली चौधरी नत्थू के कंठ में फंसी की फंसी रह गई. उसने पलटकर एक अजीब अंदाज से करीमदाद की ओर देखा, जो सिर पर अपना साफा ठीक कर रहा था.
"क्या कहा?"
करीमदाद ने धीमी मगर मज़बूत आवाज़ में कहा-"मैंने कहा गाली न दे किसी को."
हलक में फंसी हुई मां की गाली बहुत जोर से बाहर निकालकर, चौधरी नत्थू ने बड़े तीखे अन्दाज में करीमदाद से कहा-"किसको?" क्या लगते हैं वे तुम्हारे?" फिर वह चौपाल में जमा लोगों से मुखातिब हुआ-"सुना तुम लोगों ने.. कहता है गाली न दो किसी को. पूछो इससे भला वो क्या लगते हैं?"
करीमदाद ने बड़े धैर्य से जवाब दिया-" मेरे क्या लगते हैं? मेरे दुश्मन लगते हैं." चौधरी के हलक से फटा-फटा सा कहकहा इस तरह जोर से बुलंद हुआ कि उसकी मूंछों के बाल बिखर गए-"इसकी बात सुनी तुम लोगों ने. दुश्मन लगते हैं. और दुश्मन को प्रेम करना चाहिए क्या बरखुरदार?"
करीमदाद ने बड़े बरखुरदाराना लहजे में जवाब दिया-"नहीं चौधरी! मैं नहीं प्यार करना चाहता. मैंने केवल यह कहा है कि गाली नहीं देनी चाहिए." करीमदाद के साथ ही उसका बचपन का यार मीरबख्श बैठा था. उसने पूछा-"क्यों?"
करीमदाद केवल मीरबख्श से मुखातिब हुआ-"यार.. वो पानी बंद करके तुम्हारी जमीनें बंजर बनाना चाहते हैं और तुम गाली देकर यह समझते हो कि हिसाब बेबाक हुआ. यह कहां की अक्लमंदी है? गाली तो उस समय दी जाती है जब और कोई जवाब ही न हो"
मीरबख्श ने पूछा-"तुम्हारे पास कोई जवाब है?" करीमदाद ने जरा रुककर कहा-"सवाल केवल मेरा नहीं, हजारों-लाखों आदमियों का है."
अकेला मेरा जवाब सभी का जवाब नहीं हो सकता. ऐसे मामलों में सोच समझकर कोई ढंग का जवाब तैयार किया जा सकता है. वह एक दिन में दरियाओं का रुख नहीं बदल सकते. कई साल लगेंगे. मगर यहां तो तुम लोग गालियां देकर एक मिनट में अपने दिल की आग निकाल रहे हो."
फिर उसने मीरबख्श के कंधे पर हाथ रखकर बड़े ही खुलूस के साथ कहा-"मैं इतना जानता हूं यार कि हिंदुस्तान को कमीना, नीच और जालिम कहना भी सही नहीं है"
मीरबख्श की जगह, चौधरी नत्थू चिल्लाया-"लो, और सुनो"
करीमदाद मीरबख्श से ही कहता रहा-"दुश्मन से मेरे भाई, रहम-करम की उम्मीद रखना बेवकूफी है. लड़ाई आरम्भ हो और यह रोना रोया जाए कि दुश्मन बड़े बोर की राइफलें प्रयोग कर रहा है, हम छोटे बम गिराते हैं, और वह बड़ा बम गिराता है. तुम अपने ईमान से कहो, यह शिकायत भी क्या कोई शिकायत है! छोटा चाकू भी मारने के लिए प्रयोग होता है और बड़ा चाकू भी. क्या मैं झूठ कहता हूं?"
मीरबख्श की बजाय चौधरी नत्थू ने सोचना शुरू कर दिया, पर फौरन ही झुंझलाया, लेकिन प्रश्न यह है कि वो पानी बंद कर रहे हैं.. हमें भूखा और प्यासा मारना चाहते हैं."
करीमदाद ने मीरबख्श के कंधे से हाथ हटाया और चौधरी नत्थू से मुखातिब हुआ-"चौधरी जब किसी को दुश्मन कह दिया तो फिर यह गिला कैसा कि वह हमें भूखा-प्यासा मारना चाहता है. वह तुम्हें भूखा-प्यासा नहीं मारेगा, तुम्हारी हरी-भरी उपजाऊ जमीनों को वीरान और बंजर नहीं बनाएगा, तो क्या वह तुम्हारे लिए पुलाव और शरबत के मटके वहां से भिजवाएगा? तुम्हारी सैर तफरीह के लिए बाग-बगीचे लगाएगा?"
चौधरी नत्थू झल्ला उठा-"यह क्या तू बकवास कर रहा है?"
मीरबख्श ने भी धीरे करीमदाद से पूछा-"हां, यार, यह क्या बकवास है?"
"बकवास है, मीरबख्श !" करीमदाद ने समझाने के लिए मीरबख्श से कहा-"तू जरा सोच तो सही कि लड़ाई में दोनों मुल्क एक-दूसरे को पछाड़ने में क्या कुछ नहीं करते. जब पहलवान, जंगर-लंगोट कस कर अखाड़े में उतर आए तो उसे हर दांव का प्रयोग करने का हक होता है."
मीरबख्श ने अपना घुटा हुआ सिर हिलाया, "यह तो सही है."
करीमदाद मुस्कुराया-"तो फिर दरिया बंद करना भी सही है, हमारे लिए यह जुल्म है, मगर उसके लिए जायज है."
"जायज है... क्या है.. जब तेरी जीभ प्यास के मारे लटककर धरती पर आ जाएगी, तब मैं पूछूंगा कि जुल्म जायज है अथवा नाजायज... जब मेरे बाल-बच्चे अनाज के एक-एक दाने को तरसेंगे, तब भी तू यही कहना कि दरिया बंद कर देना बिल्कुल सही था."
करीमदाद ने अपने सूखे अधरों पर जबान फेरी और कहा-"मैं तब भी यही कहूंगा चौधरी.. तुम यह क्यों भूल जाते हो कि केवल वह तुम्हारा दुश्मन नहीं, हम भी उसके दुश्मन हैं. यदि हमारे बस में होता तो हमने भी उसका दाना-पानी बंद किया होता. वह कर सकता है और करने वाला है तो हम अवश्य उसका कोई तोड़ सोचेंगे. व्यर्थ गालियां देने से क्या होता... दुश्मन तुम्हारे लिए दूध की नदियां नहीं जारी करेगा. चौधरी नत्थू. उसने यदि हो सका तो वह तुम्हारे पानी की हर बूंद में जहर मिला देगा. तुम इसे जुल्म कहोगे, वहशीपन कहोगे, इसलिए कि मारने का यह ढंग तुम्हें पसंद नहीं.... अजीब सी बात है कि लड़ाई आरम्भ करने से पहले दुश्मन से निकाह की-सी शर्तें मनवाई जाएं.... उससे कहा जाए कि देखो, मुझे भूखा-प्यासा मत मारना, बल्कि बंदूक से और वह भी इतने बोर की बंदूक से तुम मुझे शौक से मार सकते हो. असल बकवास तो यह है.. थोड़ा ठंडे दिल से सोचो."
चौधरी नत्थू झुंझलाहट की अंतिम हद तक पहुंच गया-"बर्फ ला के रख मेरे दिल पर."
"यह भी मैं ही लाऊं" यह कहकर करीमदाद हंसा. इसके बाद करीमदाद के कंधे पर थपकी देकर उठा तथा चौपाल से चला गया.
घर की ड्योढ़ी में दाखिल हो ही रहा था कि भीतर से बख्तो दाई बाहर निकली. करीमदाद को देखकर उसके होंठों पर एक पोपली सी मुस्कुराहट फैल गई-"मुबारक हो कीमे ! चांद सा बेटा हुआ है. अब कोई बढ़िया सा नाम सोच उसका."
"नाम?" करीमदाद ने क्षण भर के लिए सोचा-"यजीद-यजीद!"
बख्तो दाई का मुंह आश्चर्य से खुला का खुला रह गया. करीमदाद नारे लगाता, भीतर घर में घुसा. जीनां चारपाई पर लेटी थी.
पहले से किसी कदर जर्द. उसकी बगल में एक गुल-गोथना सा बच्चा, चपड़-चपड़ अपना अंगूठा चुसक रहा था.
करीमदाद ने उसकी तरफ प्यार से गर्वभरी दृष्टि से देखा और उसके एक गाल को उंगली से छूते हुए कहा-"ओय मेरे यजीद!"
जीनां के मुंह से हल्की सी हैरत भरी चीख निकली-"यजीद!.... यह इसका नाम है."
जीनां की आवाज बहुत धीमी हो गई-"यह तुम क्या कह रहे हो कीमे? ... यजीद......?....."
करीमदाद मुस्कुराया-"क्या बुराई है इसमें? नाम ही तो है?"
जीनां केवल इतना कह सकी-"मगर किसका नाम?"
करीमदाद ने संजीदगी से उत्तर दिया-"जरूरी नहीं कि यह वही यजीद हो. यदि उसने दरिया का पानी बंद किया, तो यह खोलेगा."
                                                                                                     (सआदत हसन मंटो)

1 टिप्पणी:

Unknown ने कहा…

बहुत बेहतरीन चीज पेश की आपने। लाजवाब।

बातें करनी है तो...

संपर्क -
ई-पता : aabhai.06@gmail.com
दूरभाष : +919811937416

@ Copyrights:

कंटेट पर कॉपीराइट सुरक्षित है. उल्लंघन पर विधिमान्य तरीकों से चुनौती दी जा सकती है.