वो इनसां धूप में काला हो गया.
हर नई मुसीबत से निराला हो गया.
क्या रहा उसकी ज़िंदगी का निचोड़,
दिल में टीस, पांव में छाला हो गया.
एक रेगिस्तान दोनों आंख में,
आंसू नहीं टपके, पलकों में जाला हो गया.
यूं तो रिश्ता उसका कोई नहीं,
मगर वो अमीरों का साला हो गया.
मैयत उठी हर रोज़ मानो,
मौत से बदतर इक-इक निवाला हो गया.
(अभय श्रीवास्तव)
1 टिप्पणी:
वाह क्या बात! बहुत बेहतरीन!
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